सर छोटू राम: गरीबों के मसीहा की कहानी

सर छोटू राम, भारतीय इतिहास में एक महान नेता थे। उन्होंने अपने जीवन को गरीब लोगों की सेवा में समर्पित किया और अपने क्षेत्र के किसानों के हित में कार्य किया। सर छोटू राम के जीवन परिचय, उनके योगदान और उनके सामाजिक उद्देश्यों की वजह से वे भारतीय राजनीति के अद्वितीय आदर्श रहे हैं।

सर छोटू राम का जन्म 24 नवंबर, 1881 में हरियाणा के रोठाक गांव में हुआ। उनके पिता का नाम स्वर्गीय छाजूराम था, जो एक किसान थे। छोटू राम की माता अप्पा देवी एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता थीं और उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा में लगाने का महत्व समझाया। सर छोटू राम की शिक्षा विधवा माताओं द्वारा संचालित एक स्थानीय पाठशाला में हुई, जहां से उन्होंने अपनी मूल शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने प्री-मेडिकल पढ़ाई के लिए दिल्ली जाकर अपनी शिक्षा जारी रखी।

छोटू राम को न्यायिक सेवा में प्रवेश करने का सपना था, लेकिन उनके पिताजी की मृत्यु के कारण उन्हें किसानों की मदद करने के लिए अपने गांव लौटना पड़ा। वहां पर किसानों की समस्याओं ने उनके दिल को छू लिया और उन्होंने इसके लिए समर्पित कर दिया।

सर छोटू राम ने किसानों की जीवनायु बेहतर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने कृषि उपजों की कीमतों को न्यायसंगत बनाने के लिए संगठनों की स्थापना की। उन्होंने किसानों के लिए ऋणों की सुविधा प्रदान की और उन्हें नई तकनीकों और विज्ञान के लाभों से अवगत कराया। साथ ही, उन्होंने भूमि सुधार कानूनों की संशोधन की मांग की और किसानों को भूमि के मामलों में न्याय पाने में मदद की।

छोटू राम का सामाजिक दृष्टिकोण भी काफी मशहूर था। उन्होंने विद्या प्राप्त करने के लिए सभी वर्गों के लोगों को प्रोत्साहित किया और महिलाओं के शिक्षा को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया और गरीबों और दलितों के हक की रक्षा की। उन्होंने किसानों की जमीन की मांगों के लिए संघर्ष किया और भूमि संरक्षण के लिए भी कई पहल की।

सर छोटू राम ने गांव के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उद्देश्यों की प्रोत्साहना की। उन्होंने 1937 में पंजाब में किसानों के लिए दल बनाया, जिसका नाम आर्या प्रथमिक सभा था। उन्होंने पंजाब किसानों के हित में कार्य करते हुए उन्हें एकजुट करने का प्रयास किया और उन्हें आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दलों के रूप में संगठित किया।

छोटू राम ने अपने लोकप्रियता के कारण 1937 में पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए और उन्होंने कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने दलितों के हक की रक्षा की, मजदूरों के लिए संघर्ष किया और भूमि संरक्षण के लिए पहल की।

सर छोटू राम के योगदान की वजह से कृषि क्षेत्र में सुधार हुआ और किसानों की स्थिति में सुधार हुआ। उन्होंने किसानों को सामरिक शक्ति दी, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई और उनकी जीवनायु बेहतर हुई।

सर छोटू राम एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी अपनी भूमिका निभाई।

सर छोटू राम और साहूकार की कहानी

छोटू राम को “सर” का उपाधि क्यों दी गई?

छोटू राम को “सर” का उपाधि उनके महत्वपूर्ण योगदान और समाज की सेवा के कारण प्राप्त हुआ। “सर” का उपाधि ब्रिटिश सरकार द्वारा उपाधि प्रदान करने का एक प्रकार है, जो औपनिवेशिक काल में उन्हें दिया गया था।

छोटू राम ने अपने राजनीतिक करियर में किसानों और गरीब वर्ग के हित में विशेष महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने उनके भूमि के अधिकारों, बेहतर कृषि प्रथाओं, शिक्षा के पहुंच के लिए संघर्ष किया, और सामाजिक न्याय के लिए लड़ा। उनके प्रयासों को मान्यता नहीं सिर्फ उनके समुदाय में ही मिली, बल्कि ब्रिटिश प्रशासकों ने भी उनकी सार्वजनिक सेवा के प्रति उनकी समर्पण को मान्यता दी।

उनके महत्वपूर्ण कार्य और नेतृत्व के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार ने उन्हें “सर” का उपाधि प्रदान किया, जो एक विशिष्टता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। वह उस युग की रूढ़िवादी प्रथा थी जब विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान और समाज की सेवा महत्वपूर्ण यह ध्यान देने योग्य है कि “सर” का उपाधि छोटू राम जैसे महान व्यक्ति के योगदान और मूल्यों को कम नहीं करता है। उनकी विरासत और भारतीय समाज पर प्रभाव उस उपाधि से अधिक हैं, क्योंकि वे आज भी किसानों के अधिकार, सामाजिक सुधार और समान विकास के लिए एक महान सामर्थ्य के रूप में याद किए जाते हैं।

सर छोटू राम के प्रयासों से किसान ओर गरीब के हक में पास किए गए कुछ कानून

उनकी इन उपलब्धियों के लिए ही उन्हें रहबरे आजम और दीन बंधू की उपाधियाँ भी जनता ने दी।

कर्जा माफी ऐक्ट 1934 (8 अप्रैल 1935)

इसके तहत अगर कर्ज के पैसे का दोगुना पैसा दिया जा चुका हो तो कर्ज माफ हो जाता था. दुधारू पशुओं की नीलामी पर भी रोक लग गई थी.

साहूकार पंजीकरण ऐक्ट – 1938 (2 सितंबर 1938)

इसके तहत कोई भी साहूकार बिना रजिस्ट्रेशन के किसी को भी कर्ज नहीं दे सकता था और न ही कोर्ट में केस कर सकता था.

गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी ऐक्ट 1938 (9 सितंबर 1938)

इस कानून के तहत 8 जून 1901 के बाद कुर्क हुई जमीनों को किसानों को वापस दिलवाया गया.

कृषि उत्पाद मंडी ऐक्ट 1938 (5 मई 1939)

छोटूराम ने मार्केट कमिटियों को भी बनाया, जिससे किसानों को उनकी फसल का अच्छा पैसा मिलने लगा. आढ़तियों के शोषण से मुक्ति मिल गई.

व्यवसाय श्रमिक ऐक्ट 1940 (11 जून 1940)

इस कानून के तहत मज़दूरों को सप्‍ताह में 61 घंटे और एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता था. इसके अलावा साल में 14 छुट्टियां और 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराए जाने का भी नियम बना था.

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